कभी उत्तीर्ण हो जाऊँ यही है कामना मन की कभी उत्तीर्ण हो जाऊँ यही है कामना मन की
देह से शुरु होकर देह पर खत्म हो जाता है जरा मोहब्बत मे दिल लगा कर तो दिखाओ देह से शुरु होकर देह पर खत्म हो जाता है जरा मोहब्बत मे दिल लगा कर तो दिखाओ
प्रेम निर्जीव है जिसे जान देने के लिए हम केवल इंतज़ार कर सकते हैं। प्रेम निर्जीव है जिसे जान देने के लिए हम केवल इंतज़ार कर सकते हैं।
प्रेम और प्यार की जहाँ, बुनियाद बनती शर्त, रिश्तों को मिलता फिर, नया आधार शर्तों में। प्रेम और प्यार की जहाँ, बुनियाद बनती शर्त, रिश्तों को मिलता फिर, नया आधार शर्तों...
नई दिशा ये मांग रही है, फैला कर अपना आंचल, विधि पर निर्भर प्रगति चाक में, कहती कुछ लाओ हल-चल क्यों ज... नई दिशा ये मांग रही है, फैला कर अपना आंचल, विधि पर निर्भर प्रगति चाक में, कहती क...
जो तुम्हारे होठों की नहीं आँखों की और तकता है जो तुम्हारी बस अच्छाइयाँ नहीं कमियाँ भी जो तुम्हारे होठों की नहीं आँखों की और तकता है जो तुम्हारी बस अच्छाइयाँ नही...